Thursday, January 13, 2011

आस में रुके है.....

last whole month had been a writing drought for me.... nothing much has been happening in life these days.... its lyk a emotional stagnant period......well, feels kind of desirable after so much of emo crap that went by.... so,here's d only one poem i could complete last month.....

आस में रुके है.....

हम ऐसे मुकाम पर खड़े है आज.....
जहा ठोकर की डर से कदम चलना छोड़ चुके हैं.....|
हम सह गए बड़े-बड़े तूफाँ कभी..... पर आज....
इस छोटी सी आँधी में, हमराही की आस में रुके हैं.... |

बहारों की सैर किया करते थे कभी....
आज वो गुलशन, रेगिस्ता में बदल चुके हैं....|
झुलस चुके थे, तन्हाई में बौरा गए थे...
आज टूट, बिखर रेगिस्ता में ही मिल चुके हैं.....|

आज भी करता है दिल, उठ-बढ़-लड़ने को....
पर मानो ये हाथ खुदको बेड़ियाँ बाँध चुके हैं....|
चाबी सामने पड़ी हैं.... पर...
कोई खोल बेड़ियाँ, गले लग जाएँ... इस आस में रुके हैं....|

चलते आये थे राहो पर अनजानी, बेख़ौफ़ कभी....
आज अजनबी वादियों को देख, राहें मोड़ चुके हैं....|
वजह डर नहीं, जो बचा है उसे भी खो देने का....
पर शायद अब, इस ज़हन-ओ-जुबां की हम परवाह छोड़ चुके हैं.....|

आदत पड़ चुकी है, नम पलकों की अब...
बेहते आंसूं की परवाह हम छोड़ चुके हैं....|
भीड़ भरी इस दुनिया में, बिच मझधार खड़े है....
पहचान इन्हें कोई पोंछ दें.... इस आस में रुके हैं....|

बहरा गए अरमान सारे दिल के, हमारे लिए...
और शायद, अनसुने हम इस दुनिया क लिए हो चुके हैं....|
वक़्त के तमाचों से, सुन्न पड़ें है हम...
किसी के प्यार भरे सहलाव की आस में रुके हैं.... |

2 comments: